जीवन परिचय-
हिन्दी के श्रेष्ठ निबन्धकार आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1907 ई० में
बलिया जिले के दूबे का छपरा नामक ग्राम में हुआ था । इनके पिता श्री अनमोल
द्विवेदी ज्योतिष और संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान थे । अत : इन्हें ज्योतिष और
संस्कृत की शिक्षा उत्तराधिकार में प्राप्त हुई । काशी जाकर इन्होंने संस्कृत -
साहित्य और ज्योतिष का उच्च स्तरीय ज्ञान प्राप्त किया । इनका प्रतिभा का विशेष
विकास विश्वविख्यात संस्था शान्ति निकेतन में हुआ । वहाँ ये 11 वर्ष तक हिन्दी भवन
के निदेशक के रूप में कार्य करते रहे । वहीं इनके विस्तृत अध्ययन और लेखन का कार्य प्रारम्भ हुआ ।
सन् 1949 ई० में लखनऊ विश्वविद्यालय ने इन्हें डी०लिट० की उपाधि से तथा सन् 1957
ई० में भारत सरकार ने ' पद्मभूषण ' की उपाधि से विभूषित किया । इन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय और पंजाब
विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष पद पर कार्य किया तथा उत्तर प्रदेश
सरकार की हिन्दी ग्रन्थ अकादमी के अध्यक्ष रहे । तत्पश्चात् ये हिन्दी - साहित्य
सम्मेलन प्रयाग के सभापति भी रहे । 19 मई , 1979 ई० को यह
वयोवृद्ध साहित्यकार रुग्णता के कारण स्वर्ग सिधार गये ।
साहित्यिक योगदान-
हजारीप्रसाद द्विवेदी साहित्य के प्रख्यात निबन्धकार , इतिहास - लेखक , अन्वेषक , आलोचक
, सम्पादक तथा उपन्यासकार के अतिरिक्त कुशल वक्ता और सफल
अध्यापक भी थे । वे मौलिक चिन्तक , भारतीय संस्कृति और
इतिहास के मर्मज्ञ , बंगला तथा संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान
थे । इनकी रचनाओं में नवीनता और प्राचीनता का अपूर्व समन्वय था । इनके साहित्य पर
संस्कृत भाषा . आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और रवीन्द्रनाथ ठाकुर का स्पष्ट प्रभाव है
। इन्होंने ' विश्वभारती ' और '
अभिनव भारतीय ग्रन्थमाला का सम्पादन किया । इन्होंने अपभ्रंश और
लुप्तप्राय जैन - साहित्य को प्रकाश में लाकर अपनी गहन शोध - दृष्टि का परिचय दिया
। निबन्धकार के रूप में विचारात्मक निबन्ध लिखकर भारतीय संस्कृति और साहित्य की
रक्षा की ।इन्होंने नित्यप्रति के जीवन की गतिविधियों और अनुभूतियों का मार्मिकता
के साथ चित्रण किया है । ये हिन्दी ललित निबन्ध लेखकों में अग्रगण्य हैं ।
द्विवेदी जी की साहित्य - सेवा को डीलिट् , पद्मभूषण और
मंगला प्रसाद पारितोषिक से सम्मानित किया गया है । आलोचक के रूप में द्विवेदी जी
ने हिन्दी - साहित्य के इतिहास पर नवीन दृष्टि से विचार किया । इन्होंने हिन्दी -
साहित्य का आदिकाल में नवीन सामग्री के आधार पर शोधपरक विश्लेषण प्रस्तुत किया है
। सूर - साहित्य पर इन्होंने भावपूर्ण आलोचना प्रस्तुत की है । इनके समीक्षात्मक
निबन्ध विभिन्न संग्रहों में संगृहीत हैं । उपन्यासकार के रूप में द्विवेदी जी ने
चार उपन्यासों की रचना की । इनके उपन्यास सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर आधारित हैं ।
इनमें इतिहास और कल्पना के समन्वय द्वारा नयी शैली और उनकी मौलिक प्रतिभा का परिचय
मिलता है ।
रचनाएँ- आचार्य द्विवेदी का साहित्य बहुत
विस्तृत है । इन्होंने अनेक विधाओं में उत्तम साहित्य की रचना की । इनकी प्रमुख
रचनाएँ निम्नलिखित हैं
1 . निबन्ध -
संग्रह '
अशोक के फूल ' , ' कुटज ' , ' विचार प्रवाह ' , ' विचार और वितर्क ' , ' आलोक पर्व ' , ' कल्पलता ।
2 . आलोचना -
साहित्य '
सूरदास ' , ' कालिदास की लालित्य योजना '
, ' कबीर ' , ' साहित्य - सहचर ' , ' साहित्य का मर्म ' ।
3 . इतिहास- ' हिन्दी - साहित्य की भूमिका ' , ' हिन्दी - साहित्य
का आदिकाल ' , ' हिन्दी - साहित्य ' ।
4 . उपन्यास ' बाणभट्ट
की आत्मकथा ' , ' चारुचन्द्रलेख ' , ' पुनर्नवा और ' अनामदास का पोथा ।
5 . सम्पादन नाथ सिद्धों की बानियाँ ' ,
' संक्षिप्त पृथ्वीराज रासो ' , सन्देश रासक ।
6 . अनूदित रचनाएँ-
प्रबन्ध चिन्तामणि ' , ' पुरातन प्रबन्ध - संग्रह '
, हिन्दी ' प्रबन्धकोश ' , ' विश्वपरिचय ' , ' लाल कनेर ' , ' मेरा बचपन ' आदि ।
साहित्य में स्थान-
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी हिन्दी गद्य के प्रतिभाशाली रचनाकार थे । इन्होंने
साहित्य के इतिहास - लेखन को नवीन दिशा प्रदान की । वे प्रकाण्ड विद्वान , उच्चकोटि के विचारक और समर्थ आलोचक थे । गम्भीर आलोचना , विचारप्रधान निबन्धों और उत्कष्ट उपन्यासों की रचना कर द्विवेदी जी ने
निश्चय ही हिन्दी - साहित्य में गौरवपूर्ण स्थान पा लिया है ।