मलिक मुहम्मद जायसी का परिचय-मलिक मुहम्मद जायसी की पद्मावत
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मलिक
मुहम्मद जायसी
जीवन
- परिचय- मलिक मुहम्मद जायसी निर्गुण भक्ति की प्रेममार्गी शाखा के प्रतिनिधि कवि
हैं । पं० रामचन्द्र शुक्ल इन्हें सूर एवं तुलसी के समकक्ष कवि मानते हैं । इनका
जन्म सन् 1492 ई० के लगभग हुआ था । कुछ लोग गाजीपुर को और कुछ जायस को इनका जन्म स्थान
मानते हैं । पर यह निर्विवाद है कि इनके जीवन का अधिकांश भाग जायस में ही बीता था
। इसी से ये ' जायसी ' कहे जाते हैं ।
जन्म स्थान विषयक जायसी का स्पष्ट है - 'जायस नगर मोर अस्थानू। नगरक नांव आदि
उदयानू।' जायसी सूफी सन्त थे । शरीर से कुरूप थे ,
पर इनका हृदय पवित्र एवं निर्मल था । मानव मात्र के प्रति सहृदयता
और प्रेम की भावना से ओत - प्रोत हो जायसी ने मानव - हृदय की उस अवस्था के दर्शन
कराए , जहाँ सभी धर्मों और सम्प्रदायों के भेदभाव तिरोहित हो
जाते हैं और मनुष्य ऐक्य , प्रेम एवं सहानुभूति का अनुभव
करता है । जायसी ने सूफी संत शेख मेंहदी तथा मुबारक शाह से दीक्षा ग्रहण की थी ।
प्रारम्भ में वे गाजीपुर तथा भोजपुर के महाराजा - के यहाँ तथा बाद में अमेठी नरेश
रामसिंह के दरबार में रहने लगे । जायसी की मृत्यु सन् 1542 ई० में
हुई मानी जाती है ।
कृतित्व
एवं व्यक्तित्व-
' पद्मावत ' , ' अखरावट
' , ' आखिरी कलाम ' , चित्ररेखा '
आदि जायसी की प्रसिद्ध रचनाएं हैं ।
इनमें ' पद्मावत ' सर्वोत्कृष्ट
है और वही जायसी की अक्षय - कीर्ति का आधार है । आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार
इस ग्रन्थ का प्रारम्भ 1520 ई० में हुआ था और समाप्ति 1540 ई० में । जायसी निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे और उसकी प्राप्ति के लिए '
प्रेम की साधना में विश्वास रखते थे । इस प्रेममार्ग में उन्होंने
विरह पर सर्वाधिक बल दिया है । अपने प्रिय ( ईश्वर ) से वियोग की तीव्र अनुभूति
भक्त को साधना - पथ पर अग्रसर होने को प्रेरित करती है । अपनी इसी भक्ति - भावना
को उन्होंने ' पद्मावत ' में व्यक्त
किया है ।
साहित्यिक
- अवदान- जायसी ने ' पद्मावत में चित्तौड़ के राजा रत्नसेन
और सिंहलद्वीप की राजकुमारी पद्मावती की प्रेमकथा का अत्यन्त मार्मिक वर्णन किया
है । एक ओर तो इतिहास और कल्पना के सुन्दर संयोग से यह एक उत्कृष्ट प्रेम - गाथा
है , और दूसरी ओर इसमें आध्यात्मिक प्रेम की भी अत्यन्त
भावमयी अभिव्यंजना है । इस प्रकार की रचनाओं को हमारे यहाँ ' प्रेमाख्यान ' कहा गया है । निश्चय ही जायसी का '
पद्मावत ' हिन्दी का श्रेष्ठ प्रेमाख्यान
काव्य - ग्रन्थ है ।
रसपरिपाक - जायसी का
विरह - वर्णन अत्यन्त विशद एवं मर्मस्पर्शी है । संयोग - काल की रूपगर्विता नागमती
विरह में अत्यन्त सामान्य नारी बन जाती है । वह अपने हृदय की विरह - व्यथा की
व्यंजना रानी के रूप में नहीं , अपितु नारी - जीवन की
सर्वसामान्य अनुभूतियों के माध्यम से करती है । नागमती प्रकृति और जगत की प्रत्येक
क्रिया को सजग होकर देखती है । बाहरी जगत का उल्लास उसे अपनी संयोगावस्था की याद
दिलाता है तथा नियोग व्यथा को और भी तीव्र कर देता है । ' षड्ऋतु
वर्णन ' और ' बारहमासा ' जायसी के संयोग एवं विरह वर्णन के अत्यन्त मार्मिक स्थल है । जायसी
रहस्यवादी कवि हैं , इन्होंने ईश्वर और जीव के पारस्परिक
प्रेम की व्यंजना दाम्पत्य - भाव के रूप में की है । रत्नसेन जीव है तथा पद्मावती
परमात्मा । यह सूफी पद्धति है । ' पदमावत ' में पुरुष ( रत्नसेन ) प्रियतमा ( पद्मावती ) की खोज में निकलता है ।
जायसी ने इस प्रेम की अनुभूति की व्यंजना रूपक के आवरण में की है । इन्होंने
साधनात्मक रहस्यवाद का चित्रण भी किया है , जिसकी प्रधानता
कबीर में दिखायी देती है । जायसी ने सम्पूर्ण प्रकृति में पद्मावती के सौन्दर्य को
देखा है तथा प्रकृति की प्रत्येक वस्तु को उस परम सौन्दर्य की प्राप्ति के लिये
आतुर और प्रयत्नशील दिखाया है । यह प्रकृति का रहस्यवाद कहलाता है । जायसी की
भाँति कबीर में हमें यह भावात्मक प्रकृतिमूलक रहस्यवाद देखने को नहीं मिलता ।
' पद्मावत ' महाकाव्य विरहानुभूति के मार्मिक वर्णन और अलौकिक - सौन्दर्य की उत्कृष्ट
अभिव्यंजना के कारण अत्यन्त भावपूर्ण एवं हृदयस्पर्शी हो गया है । जीवन के विविध
पक्षों का व्यापक चित्रण जायसी के काव्य में हुआ है । पद्मावती के रूप - सौन्दर्य
का मर्मस्पर्शी वर्णन नख - शिख वर्णन पद्धति पर हुआ है । शृंगार के संयोग एवं वियोग
पक्ष के हृदयहारी एवं मार्मिक चित्र पद्मावत में देखे जा सकते हैं । गोरा - बादल
के युद्ध वाले प्रसंग में वीर , रौद्र , वीभत्स , भयानक आदि रसों की सुन्दर व्यंजना हुई है ।
आध्यात्मिकता की गंगा में नहायी यह प्रेम - कथा शान्त रस की दिव्य अनुभूति में
पाठक को निमग्न कर देती है । इस प्रकार सौन्दर्य , प्रेम ,
रहस्यानुभूति , भक्ति आदि की अभिव्यंजना से
पुष्ट जायसी के काव्य का भावपक्ष बड़ा सबल है ।
भाषा
- शैली - जायसी की भाषा अवधी है । लेकिन यत्र - तत्र
उसमें अपभ्रंश तथा अरबी फारसी के शब्द भी मिलते हैं । उसमें बोलचाल की लोकभाषा का
उत्कृष्ट भावाभिव्यंजक रूप देखा जा सकता है । लोकोक्तियों के प्रयोग से उसमें
प्राणप्रतिष्ठा हुई है । केवल चमत्कारपूर्ण कथन की प्रवृत्ति जायसी में नहीं है ।
मसनवी शैली पर लिसित ' पद्मावत ' में
प्रबन्ध काव्योचित सौष्ठव विद्यमान है । दोहा और चौपाई जायसी के प्रधान छन्द
पदमावत की रचना दोहा एवं चौपाई तथा छन्दों में की है , जो एक
महान उपलब्धि है । जायसी हिन्दी साहित्य के प्रथम महाकाव्यकार हैं साथ ही वे
प्रेमाख्यान काव्य परम्परा में भी अपना सर्वोपरि स्थान रखते हैं ।
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ReplyDeleteआप का लेख लिखने का तरीका बहुत ही सुंदर व सुव्यवस्थित है आप ने बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारियो का संग्रह किया है, धन्यवाद, मीरा बाई का जीवन परिचय
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